तिथि और शुभ मुहूर्त
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. 2025 में, अष्टमी तिथि 15 अगस्त की रात 11 बजकर 48 मिनट पर शुरू होकर, 16 अगस्त की रात 09 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी. जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त 16 अगस्त की रात 12:05 से 12:45 तक रहेगा.
महत्व और परंपराएं
जन्माष्टमी का त्यौहार केवल भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव नहीं बल्कि न्याय और धर्म की विजय का भी प्रतीक है. इस दिन कृष्ण भक्त उपवास रखते हैं, घरों और मंदिरों को सजाते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और मध्य रात्रि में भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं.
पूजा और व्रत: भक्तगण नए वस्त्र और आभूषणों से श्री कृष्ण का श्रृंगार करते हैं, प्रेमानंद महाराज के अनुसार श्री कृष्ण के 108 नामों का जाप करते हैं, कृष्ण लीला की कथाएं सुनते हैं और कीर्तन करते हैं. जन्माष्टमी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने और तामसिक भोजन (नॉनवेज, प्याज, लहसुन) से दूर रहने की सलाह दी जाती है. व्रत का पारण भगवान कृष्ण के जन्म के बाद भोग के प्रसाद के साथ किया जाता है.
उत्सव: कई राज्यों में जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का आयोजन भी किया जाता है. महाराष्ट्र में यह उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहां लोग मानव पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर लटकी दही और माखन से भरी हांडी को तोड़ने का प्रयास करते हैं.
अन्य परंपराएं: वृंदावन, मथुरा, और नाथद्वारा जैसे स्थानों पर विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं. दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक में, घरों के प्रवेश द्वार पर बाल कृष्ण के पैरों के निशान बनाए जाते हैं, जो भगवान कृष्ण के घर में स्वागत का प्रतीक है.
विशेष योग
इस बार जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग के साथ-साथ वृद्धि, ध्रुव, श्रीवत्स, गज लक्ष्मी और बुधादित्य योग भी बन रहे हैं. माना जाता है कि इन योगों में की गई पूजा अधिक फलदायी होती है.
शुभकामनाएं
इस अवसर पर लोग एक दूसरे को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं देते हैं। कुछ लोकप्रिय शुभकामना संदेशों में शामिल हैं:
“नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की…”
“राधा की भक्ति मुरली की मिठास, माखन का स्वाद और गोपियों का रास, सब मिलकर बनाते हैं जन्माष्टमी का दिन खास!”
यह त्यौहार भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम, भक्ति और उनके जीवन से मिली शिक्षाओं को याद करने का अवसर है.
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